दोषमुक्ति के बाद बहाली की गुहार, 27 साल से न्याय की आस
मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज इंसाफ के रखवालो तक पहुंचाना चाहते हैं।
बुरहानपुर (मध्य प्रदेश)। भारतीय स्टेट बैंक में 1968 से अपनी सेवाएं दे रहे माणकचंद मोतीलाल नामदेव (EWS-61, न्यू इंदिरा कॉलोनी) पिछले 27 वर्षों से न्याय की उम्मीद में दर-दर भटक रहे हैं।
1999 में भारतीय स्टेट बैंक की कृषि विकास शाखा (04582), बुरहानपुर में हुए एक गबन मामले में उन्हें फंसाया गया। माणकचंद का दावा है कि गबन 1995 से 1998-99 के बीच बैंक के कर्मचारियों द्वारा फर्जी दस्तावेजों और खातों के जरिए अंजाम दिया गया। वह इस दौरान मुख्य शाखा (0342) में कार्यरत थे और रिजर्व बैंक नागपुर में आदेशों का पालन कर रहे थे।
जांच में मनमानी और न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति
माणकचंद का कहना है कि विभागीय जांच में उनके बचाव पक्ष को सुना ही नहीं गया। जांच रिपोर्ट के आधार पर नियमों और नैसर्गिक न्याय सिद्धांतों की अनदेखी करते हुए उन्हें दोषी ठहराया गया। सूचना के अधिकार के तहत दस्तावेज मांगने पर भी उन्हें आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई।
13 जुलाई 2017 को न्यायालय ने माणकचंद को दोषमुक्त कर दिया। गबन के आरोप में दो अन्य कर्मचारियों, अरुण पंसारी और रमेशचंद्र कुशवाह, को तीन साल की सजा सुनाई गई।
व्यक्तिगत जीवन पर पड़ा गहरा प्रभाव
माणकचंद ने बताया कि इस मामले के कारण उन्हें 54 दिन थाने में और 18 महीने जेल में रहना पड़ा। इस दौरान उनकी पत्नी का असमय निधन हो गया और उनका इकलौता बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गया।
बहाली की अपील
माणकचंद ने विभाग से बार-बार अपील की है कि उन्हें बहाल किया जाए, ताकि उनके बेटे के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। उनका कहना है, “मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं, लेकिन मेरे बेटे का क्या होगा? यह मेरा आखिरी निवेदन है।”
न्याय की उम्मीद
अब 77 वर्षीय माणकचंद न्याय की आस में हैं। वह विभाग से अपील कर रहे हैं कि उन्हें बहाल किया जाए और इस अन्याय को समाप्त किया जाए।