नई दिल्ली:
भारत ने सिंधु जल संधि के तहत मिले अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने का निर्णय लिया है। इस फैसले के तहत अब सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान को नहीं जाकर भारत के तीन राज्यों — जम्मू-कश्मीर, पंजाब और हिमाचल प्रदेश — की धरती को सींचेगा। इसके लिए 113 किलोमीटर लंबी एक बड़ी नहर परियोजना शुरू की जा रही है।
यह नहर परियोजना देश की जल नीति के तहत एक बड़ा कदम है, जिसका उद्देश्य सीमावर्ती और पहाड़ी इलाकों में सिंचाई और पेयजल संकट को खत्म करना है। इस योजना से लाखों किसानों को लाभ होगा और कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत अब तक सिंधु जल संधि के तहत अपने हिस्से के पानी का पूरा उपयोग नहीं कर रहा था, और इसका एक बड़ा भाग पाकिस्तान को बहकर चला जाता था। लेकिन अब भारत अपनी परियोजनाओं और संरचनाओं के ज़रिए इस जल का इस्तेमाल खुद करेगा — जो संधि के नियमों के बिल्कुल अनुरूप है।
क्या है सिंधु जल संधि?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों — रावी, व्यास और सतलुज — का पूरा जल उपयोग करने का अधिकार है, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के पानी का अधिकार दिया गया। हालांकि, भारत को भी इन पश्चिमी नदियों पर कुछ सीमा तक उपयोग (जैसे सिंचाई, हाइड्रोपावर आदि) की अनुमति है।
भारत अब इन प्रावधानों का पूरा उपयोग कर रहा है ताकि सीमावर्ती राज्यों को जल संकट से राहत दी जा सके।
पाकिस्तान की नाराज़गी बेअसर
पाकिस्तान ने पहले भी इस तरह की परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि यह संधि के नियमों के अंतर्गत है और कोई उल्लंघन नहीं हो रहा है। भारत का कहना है कि वह केवल अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा है, जो वर्षों से अछूते थे।