नई दिल्ली |
देश की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनसे जुड़े सैकड़ों संगठनों ने आज केंद्र सरकार की “मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त” नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
इस ऐतिहासिक हड़ताल में मजदूरों, किसानों, बैंक कर्मचारियों, परिवहन कर्मियों और शिक्षकों सहित लाखों लोग सड़कों पर उतरे। हड़ताल का व्यापक असर औद्योगिक क्षेत्रों, सार्वजनिक परिवहन, बैंकिंग, शिक्षा और निर्माण कार्यों पर देखा गया।
क्या हैं मुख्य आरोप?
ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि—
- सरकार पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए श्रम कानूनों को कमजोर कर रही है,
- कृषि कानूनों को दोबारा लाने की कोशिशें चल रही हैं,
- और तेजी से हो रहे निजीकरण से करोड़ों नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।
हड़ताल में शामिल प्रमुख संगठन:
- ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC)
- सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (CITU)
- हिंद मजदूर सभा (HMS)
- इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC)
- सीटू, सेवा, एलपीएफ, यूटीयूसी, एआईयूटीयूसी और अन्य सहयोगी संगठन
ये हैं प्रमुख मांगे:
- श्रम कानूनों में बदलाव पर रोक
- महंगाई पर लगाम
- न्यूनतम मजदूरी ₹26,000 मासिक की गारंटी
- किसानों की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित किया जाए
- सभी सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीकरण पर पूर्ण रोक
कई राज्यों में सड़कों पर मार्च, रेल रोको आंदोलन और शांतिपूर्ण धरनों के जरिए विरोध दर्ज किया गया। हालांकि, कुछ स्थानों पर प्रदर्शनकारियों को रोके जाने पर झड़पों की खबरें भी सामने आईं।
यूनियनों का एलान:
“जब तक सरकार मजदूर और किसान विरोधी फैसलों से पीछे नहीं हटती, हमारा संघर्ष जारी रहेगा। ये लड़ाई रोटी, रोजगार और सम्मान की है।”